माइंडफुलनेस मेडिटेशन एक तरह का ध्यान ही है, बस इसमें फर्क इतना है कि ध्यान लगाने के लिये कोई खास समय और जगह तय करने की ज़रूरत नहीं होती है। आप कभी भी, कहीं भी ध्यान लगा सकते हैं, यानी एक तरह से यह वर्तमान स्थितियों के प्रति जागरुक रखते हुये ध्यान करना सिखाता है। माइंडफुलनेस मेडिटेशन दिमाग को काफी हद तक बदल देता है।
भावनाओं पर काबू
न्यूरोसाइंस रिसर्च के मुताबिक, माइंडफुलनेस मेडिटेशन दिमाग की उस क्षमता को बढ़ाता है, जिससे भावनाओं और ध्यान को कंट्रोल किया जा सकता है। यानी इसकी प्रैक्टिस से आप अपनी भावनाओं पर काबू पा सकते हैं। किसी को चोट पहुंचने पर आपको दुखी होना है या नहीं। इस भावना को आप कैसे महसूस करेंगे, यह आप तय करेंगे, क्योंकि आपका अपने दिमाग पर पूरा कंट्रोल होगा।
माइंडफुलनेस मेडिटेशन एंटिरियर सिंगुलेट कोर्टेक्स की क्षमता भी बढ़ाता है। दरअसल, यह दिमाग का वह हिस्सा है, जो निर्णय लेने में मदद करता है, जैसे यदि कभी दिमाग का एक हिस्सा कह रहा है कि जंकफूड खा लो और दूसरा मना कर रहा है, तो इस स्थिति में यह हिस्सा निर्णय करता है कि आखिर करना क्या है।
दिमाग शांत रखता है
माइंडफुलनेस मेडिटेशन की प्रैक्टिस से दिमाग शांत और एकाग्र बनता है। एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी दिमाग को शांत रखने के लिए यही किया करते थे। दरअसल, जब आपके ऊपर काम का दबाव बहुत ज़्यादा होता है, तो मन अशांत और बेचैन हो जाता है, घबराहट होने लगती है। इस वजह से आप अपना काम ठीक ढ़ंग से नहीं कर पाते, लेकिन जब आप शांत मन से कोई काम करते हैं, तो मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो जाता है। इसलिये कई बड़ी कंपनियों में कर्मचारियों को माइडफुलनेस मेडिटेशन की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि उनकी कार्यक्षमता बढ़े।
क्या होते हैं फायदे?
– स्ट्रैस दूर होता है।
– याददाश्त बढ़ती है।
– एकाग्रता बढ़नी है।
– भावनाओं पर काबू रखना सीख जाते हैं।
– शांत और खुश रहते हैं।
– गुस्सा कम होता है और समझ बढ़ती है।
– निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
– नींद अच्छी आती है।
किसी भी चीज़ का प्रभाव कुछ दिनों में नहीं दिखता। इसके लिये रोज़ाना प्रैक्टिस की ज़रूरत है। माइंडफुलनेस मेडिटेशन से दिमाग पर कितना पॉज़िटिव असर होता है, यह देखने के लिये आपको इसकी रोज़ाना प्रैक्टिस करनी होगी।
सोच सही करें
– जीवन और लोगों को लेकर नैगेटिव बातें न सोचें।
– आपको जीवन में जो कुछ अच्छा मिला है, उसके बारे में सोचें।
– हालात जैसे भी हो, उसे उसी तरह स्वीकार करना सीखें।
– दूसरों के व्यवहार को खुद पर हावी न होने दें।
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