भारत सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और विविधतों वाला देश है और यह भोजन की आदतों समेत अन्य पहलुओं में भी दिखता है। हर क्षेत्र के हिसाब से भोजन अलग-अलग होता है, लेकिन खाने की आदतें लगभग एक जैसी ही है।
जाने अनजाने खाना खाते समय हमारी कई बार आदतें आयुर्वेद, मेडिसन और योग सिस्टम से मिलती है। इससे न सिर्फ पेट भरता है, बल्कि शरीर को पोषण भी मिलता है। तो जानिये, भारतीय भोजन पद्धति से आप क्या क्या सीख सकते हैं।
मिट्टी के बर्तन में खाना बनाना
जब धीमी आंच पर मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाया जाता है, तो उसमें मौजूद मिनरल्स भोजन में आ जाते हैं और आपको हेल्दी बनाते हैं। मिट्टी के बर्तनों की प्रकृति एल्कलाइन होती है, जिससे एसिडिक भोजन बनाते समय पीएच को बैलेंस करने में मदद मिलती है।

स्थानीय और मौसमी चीज़ों का इस्तेमाल
भारत में हमेशा खाना पकाने के लिये स्थानीय और मौसमी चीज़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि भोजन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री फ्रेश और केमिकल मुक्त है। मौसमी सामग्री के इस्तेमाल से भोजन आसानी से पच जाता है।
खाने का कॉम्बिनेशन
भारतीय थाली में भोजन का ऐसा कॉम्बिनेशनल होता है, जिसे संतुलित भोजन कहा जा सकता है। इसमें फ्लेवर और सामग्रियों का सही मात्रा में इस्तेमाल होता है, जो भोजन पचाने में आसान होता है और शरीर को अच्छा पोषण देता है।
मसाले का इस्तेमाल
मसाले न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाते है, बल्कि यह एंटीऑक्सीडेंट का बेहतरीन स्रोत होते हैं। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है। मसालों में औषधीय गुण होते हैं, जो भोजन को आसानी से तोड़ने और पचाने में मदद करते हैं।

ज़मीन पर बैठकर खाना
पालथी मारकर ज़मीन पर बैठकर खाना एक तरह का योग पोज़ है। इसे सुखासन कहते हैं। इस तरह बैठने से पाचन के दौरान शरीर के अंग और ज़्यादा लचीले हो जाते हैं।
केले के पत्ते पर भोजन परोसना
केले के पत्ते में बड़ी मात्रा में पॉलीफेनोल होता है, जो एक एंटीऑक्सीडेंट है। जब केले के पत्ते पर खाना खाया जाता है, तो एंटीऑक्सीडेंट भोजन में मिलकर आपके शरीर में पहुंचता है। केले का पत्ता पर्यावरण प्रदूषण से भी बचाता है।
हाथ से खाना
हाथ से खाने से शरीर के संसरी ऑर्गेन सक्रिय हो जाते हैं। यह शरीर के प्राण (महत्वपूर्ण ऊर्जा) को संतुलित करता है।

जल्दी भोजन करना
भारत के कई हिस्सों में ऐसा माना जाता है कि सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिये। ऐसा करने से भोजन को पचने के लिये बहुत समय मिलता है, जिससे पाचन संबंधी समस्या नहीं होती।
खाने के समय बात न करना
खाने के समय बात न करने या मौन रहने से माइंडफुलनेस को बढ़ावा मिलता है और आप भोजन देने वाले के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
लेखिका- डॉ. दीपाली कंपानी, शिक्षा, हेल्थकेयर और खानपान में विशेषज्ञ- इंस्ट्राक्शनल डिज़ाइनर और भारतीय पाक कला इतिहास की रिसर्च विशेषज्ञ
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