कभी किसी के कुछ कहने पर तो कभी किसी की छोटी सी हरकत पर अक्सर हमें गुस्सा आ जाता है और हम कहते हैं कि फलां इंसान या कारण से हमें गुस्सा आया वरना हम तो शांत ही रहते। मगर सच्चाई ये नहीं है, दरअसल गुस्सा इंसान के अंदर ही होता है, बस बाहरी कारणों से उत्तेजित होकर वह बाहर निकल जाता है और हम दूसरों को गुस्से का दोष देते रहते हैं। इस बात को और बेहतर तरीके से समझने के लिये पढ़िये एक भिक्षुक की कहानी।
कहानी
एक दिन भिक्षुक ने अपने मठ से दूर कहीं एकांत में जाकर ध्यान लगाने का फैसला किया है। वह एक झील किनारे पहुंचे। वहां कई नाव बंधी हुई थी। भिक्षुक ने एक नाव खोली और झील के बीचों बीच जा पहुंचा। बीच में जाकर उसने नाव रोक दीं और अपनी आंखें बंद करके ध्यान लगाया।
कुछ देर तक तो वह बिना बाधा के ध्यान मग्न रहें, लेकिन अचानक उन्हें नाव से किसी चीज़ के टकराने का एहसास हुआ। फिर भी उन्होंने आंखें नहीं खोली, जब दोबारा कुछ टकराया। यह समझकर भिक्षुक को गुस्सा आ गया, मगर आंखें बंद ही रखी क्योंकि वह ध्यान में थे।
फिर क्या हुआ?
लेकिन जैसे ही अगली बार कुछ टकराया तो उनको गुस्सा आ गया और वह आंखें खोलकर पीछे पलटकर उस नाविक को डांटने ही वाले थे। लेकिन जैसे पीछे मुड़े, तो उन्होंने देखा कि जो नाव उनसे टकरा रही थी, उसमें कोई नाविक नहीं था। वह खाली थी और उसे कोई नहीं चला रहा था।
शायद वह नाव किनारे से अपने आप बहती हुई झील के बीच में पहुंच गई थी और इसके लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं था। तब भिक्षुक को अचानक एहसास हुआ कि गुस्सा तो उनके अंदर ही है। नाव का टकराना एक बाहरी चीज़ है, जिसने उनके गुस्से को उत्तेजित कर दिया।
कहानी से सीख
इस घटना से हमें सीख मिलती है कि कोई इंसान या परिस्थिति जब भी क्रोध बढ़ाने की कोशिश करते हैं, तो वह खुद को याद दिलाते रहे कि सामने वाला इंसान या परिस्थिति तो उसी खाली नाव की तरह है और गुस्सा तो उनके अंदर ही है। इसलिये किसी और को अपने गुस्से के लिए ज़िम्मेदार ठहराने की बजाय हमें अपने अंदर के क्रोध को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
क्रोध इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है और यह सामने वाले से ज़्यादा नुकसान खुद को पहुंचाता है। इसलिये अपने अंदर के क्रोध को पहचानकर उसे नियंत्रित करने की कोशिश करें।
गुस्से पर काबू करके सोच करें सही
- बात-बात पर गुस्सा आता है तो ध्यान करें।
- पॉज़िटिव लोगों की बातें सुने और ऐसी ही किताबें पढ़ें।
- बार-बार नेगेटिव बातें न सोचें।
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