खाद्य सामग्रियों के पैकेट पर अब सिर्फ उनमें इस्तेमाल सामग्री ही नहीं लिखी होती, बल्कि इसके अलावा भी बहुत कुछ लिखा होता है। क्या आपको फूड पैकेट पर लिखे ‘लो फैट’ ‘लो कैलोरी’ का मतलब पता है?
आजकल लोग अपनी सेहत को लेकर काफी जागरूक होने लगे हैं, इसलिए उनका फोकस पोषक तत्वों से भरपूर हेल्दी और साफ-सुथरे खाने पर होता है। यही वजह है कि मार्केट से पैक्ड फूड खरीदते समय भी वह लो शुगर और लो फैट के लेबल वाली चीज़ें ही खरीदते हैं। वैसे तो फूड कंपनियां पैकेट पर उसमें इस्तेमाल सभी सामग्रियों के बारे में लिखती हैं, लेकिन कुछ चीज़ें सीक्रेट रहती हैं। क्या आपको पता है आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले फूड लेबल का असल में क्या मतलब होता है?
‘नो एडेड शुगर’
यानी ‘अतिरिक्त शक्कर नहीं है’, इसका ये मतलब कतई नहीं है कि उस प्रोडक्ट में शक्कर की मात्रा है ही नहीं। कई प्रोडक्ट्स जैसे फ्रूट जूस कुदरती रूप से बहुत मीठे होते हैं, इसलिए उनमें शक्कर मिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और कई बार कंपनियां आर्टफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करती हैं। इसलिए ऐसे लेबल पर विश्वास न करें। कोई भी चीज़ खरीदने से पहले उसकी सामग्री लिस्ट चेक कर लें। आमतौर पर यदि प्रोडेक्ट में 0.5 ग्राम प्रति सर्विंग से कम शक्कर होती है तो उत्पादक ‘शुगर फ्री’ का लेबल लगा देते हैं।

100% ऑर्गेनिक क्या है?
ऑर्गेनिक शब्द का संबंध खाद्य पदार्थ के उत्पादन से है। इसका पोषक तत्वों से कोई लेना देना नहीं है। खाद्य पदार्थ 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक है या नहीं, इसके लिए सभी चीज़ों की जांच कर लें जैसे- प्रतिबंधित सिंथेटिक पेस्टिसाइड्स, एंटीबॉयोटिक्स, सिंथेटिक फर्टिलाइजर, जेनेटिकली मोडिफाइज ऑर्गेनेज़िम और ग्रोथ हार्मोन्स। साथ ही ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर जैसे कंपोस्ट और हरी खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है। यदि ऐसा है तभी प्रोडक्ट पर ‘100% ऑर्गेनिक’ का लेबल लगा होता है। यदि खाद्य पदार्थ 95% ऑर्गेनिक सामग्रियों से बना हो तो ‘ऑर्गेनिक’ और जब 75 प्रतिशत ऑर्गेनिक सामग्रियों का इस्तेमाल होता है तब ‘मेड विद ऑर्गेनिक इंग्रीडिएंट्स’ का लेबल लगा होता है।
‘ग्लूटेन फ्री’ फूड्स
‘ग्लूटेन’ एक ऐसी चीज़ है जो अनाज में पाया जाता है, जैसे गेहूं, राई और जौ। यह उन लोगों के लिए ज़रूरी है जिन्हें ग्लूटेन-इंटॉलरेंस, गेहूं से एलर्जी या सिलिएक डिसीज है। ये स्थितियां आसानी से ट्रिगर हो जाती है, इसलिए ऐसे लोगों के लिए ‘ग्लूटेन फ्री फूड’ बनाते समय भी बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है ताकि वह ग्लूटेन वाले पदार्थों के साथ दूषित न हो जाएं। इसलिए ‘नैचुरली ग्लूटेन फ्री फूड’ या ‘प्रीपेयर्ड फूड जिसमें ग्लूटेन वाली सामग्री नहीं है’ जैसे लेबल देखकर खरीदें। हालांकि ग्लूटेन फ्री प्रोड्क्ट के बारे में बहुत कम क्लिनिकल प्रमाण हैं।

लो फैट, लो कैलोरी आदि
किसी 100 ग्राम के फूड प्रोडक्ट में तीन ग्राम से कम फैट होता है, तो उसमें लो फैट का लेबल लगाया जाता है। जब फैट प्रति सर्विंग 0.5 से कम होता है तो ‘फैट फ्री’ का लेबल लगाया जाता है। ‘सैच्युरेटेड फैट फ्री’ यह लेबल उस प्रोडक्ट में लगाया जाता है, जिसमें प्रति सर्विंग 0.5 से कम सैच्युरेटेड फैट और 0.5 से अधिक ट्रांस फैटी एसिड नहीं होता है।
‘लो कैलोरी’ फूड का मतलब है प्रति सर्विंग 40 कैलोरी या उससे कम। ‘लाइट (light)’ तब लिखा होता है जब खाद्य पदार्थ में एक तिहाई से कम कैलोरी, 50 प्रतिशत कम फैट या 50 प्रतिशत कम सोडियम हो उसके सामान्य पैकेट की तुलना में। और ‘कैलोरी फ्री’ का मतलब है कि उसमें प्रति सर्विंग कैलोरी 5 से भी कम है।
मल्टीग्रेन V/S होल ग्रेन
‘मल्टीग्रेन’ जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें एक से अधिक अनाज शामिल हैं। यह आमतौर पर सफेद आटे में कई अनाज मिलाकर बनाया जाता है।
‘होल ग्रेन’ का मतलब है कि अनाज के सभी हिस्से छिलके और चोकर का भी इस्तेमाल होता है। इसमें अधिक फाइबर, न्यूट्रिशन और पौधों के तत्व होते हैं। होल वीट या होल ग्रेन चीज़ें मल्टीग्रेन से ज़्यादा हेल्दी होती हैं।
उम्मीद है अब आप फूड लेबल को अच्छी तरह समझ पाएंगे।
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