सरलता व करूणा की पहचान हैं- बाबा आमटे

सरलता व करूणा की पहचान हैं- बाबा आमटे

समाजसेवा और प्रकृति प्रेमी बाबा आमटे के कई दिलचस्प किस्से
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कहते हैं कि कुछ लोग जीवन में ऐसा कर जाते हैं कि दुनिया सदियों तक उन्हें याद रखती है। ऐसी ही अमिट छाप छोड़ी है ‘बाबा आमटे’ ने। बाबा आमटे के नाम से मशहूर डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे ने समाज में कुष्ठ रोगियों के लिए तब काम किया, जब समाज में उन्हें अछूत समझा जाता था।

बाबा आमटे के बारे में

महाराष्ट्र के वर्धा में 26 दिसम्बर 1914 को जन्मे मुरलीधर की मां उन्हें बचपन से बाबा कहकर बुलाती थी। यही से उनका नाम बाबा आमटे पड़ गया। शायद मां ने अपने बेटे के सरल और करूणा के गुण बचपन में ही देख लिए थे।

उनसे जुड़ी एक कहानी बड़ी मशहूर है कि जब वह 9-10 साल के थे, तब एक बार अंधे व्यक्ति को भीख मांगते देख, बाबा आमटे ने उसकी झोली पैसों से भर दी थी।

सरलता व करूणा की पहचान हैं- बाबा आमटे
समाज सेवा की प्रेरणा | इमेज : फेसबुक

आज़ादी की लड़ाई में भूमिका

बाबा आमटे महात्मा गांधी और विनोबा भावे से बहुत प्रभावित थे। आज़ादी के दौरान उन्होंने देशभर का दौरा किया और इस समय वह लोगों की असल समस्याओं और परेशानियों को समझा। अहिंसा पर चलते हुए उन्होंने देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फिर वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर समाज सेवा में जुट गए।

समाज सेवा की प्रेरणा

कहते हैं कि एक दिन बारिश में एक कोढ़ी भीग रहा था, लेकिन कोई उसकी मदद करने को तैयार नहीं था। उस समय लोग कुष्ठ रोग को अछूत मानते थे, इसलिए लोग उसकी मदद करने से कतरा रहे थे। उस व्यक्ति की असहाय स्थिति देखकर बाबा आमटे को लगा कि कहीं इसकी जगह मैं होता तो लोग मेरी भी मदद नहीं करते।

ये बात बाबा आमटे के मन में घर कर गई और उन्होंने समाज में रह रहे ऐसे लोगों के लिए काम करने का लक्ष्य बनाया।

सरलता व करूणा की पहचान हैं- बाबा आमटे
समाज सेवा की प्रेरणा | इमेज : फेसबुक

आनंदवन

जब बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों के बारे में करने का सोचा, तो उन्होंने महाराष्ट्र के चंद्रपुर के घने जंगलों में पत्नी साधना, दो बेटों और सात रोगियों के साथ आनंदवन की स्थापना की। आसपास के गांव के किसान इस मिशन से जुड़ते गए और आज देश विदेशों में आनंदवन के कई केंद्र बन चुके हैं।  

इसी जगह से उन्होंने ‘महारोगी सेवा समिति की शुरुआत भी की। यही आनंदवन आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों की कड़ी मेहनत से हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। उनकी इस मेहनत को देश और दुनिया ने पहचाना और उन्हें कई सम्मानों से नवाज़ा गया।

ताउम्र समाज की सेवा करने वाले बाबा आमटे ने 9 फरवरी 2008 में इस दुनिया से विदा ली लेकिन उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

“जीवन जीने के लिए हमेशा सीखते रहना चाहिए।”

इमेज: फेसबुक

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