जीवन में कभी कभी कुछ ऐसी साहस भरी कहानियां सुनने को मिल जाती है, जिन्हें सुनकर हौसले और भी बुलंद हो जाती हैं। ऐसी ही प्रेरणा दे रही है 65 साल की लता भगवान करे, जिनके साहस की कहानी प्रोत्साहित करने के साथ मन को भी छू जाती है।
कौन हैं लताबाई करे?
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली है ‘लता भगवान करे’। लता का परिवार मज़दूरी करके अपना पालन – पोषण करता था। उनकी तीन बेटियां हैं और तीनों की शादी में लताबाई की पूरी जमा पूंजी खर्च हो गई। उनका इकलौता बेटा सुनील भी मज़दूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। लता करे अपने परिवार की ऐसी स्तंभ है, जिसके बिना घर का कोई मौल नहीं।
कैसे की शुरूआत?
लता करे के पति दिल की बीमारी से पीड़ित थे और घर की हालात भी इतने अच्छे न थे कि वह इलाज के लिये पैसा का इंतज़ाम कर सकें। मज़दूरी करके जो पैसे आते थे, वह सब घर खर्च में ही खत्म हो जाते, ऐसे में यह नहीं समझ में आ रहा था कि पति के ईलाज के लिए पैसे कहां से आयेंगे। लेकिन जब इंसान की इच्छा प्रबल होती है, तो ईश्वर भी रास्ता दिखाने के लिए विवश हो जाता है। टेस्ट हो जाने के बाद लता करे ने अस्पताल के बाहर जाकर दो समोसे खरीदे। दुकानदार ने लता करे को जिस पेपर में समोसे रखकर दिए थे, उसमें बारामती सड़क पर मैराथन का विज्ञापन ईनाम के साथ मराठी भाषा में छापा हुआ था।
दौड़ में हिस्सा लेने का बनाया मन
लता को अपने पति को उस खतरनाक बीमारी से बचाने का एक ज़रिया मिल गया था। उन्होंने उसी समय उस दौड़ में हिस्सा लेने का फैसला लिया। दूसरे दिन मैराथन शुरू होने वाले जगह पर पहुंचकर लता ने आयोजकों से उस दौड़ में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर की। आयोजकों ने लताबाई की हालत देखकर पहले तो उन्हें दौड़ में हिस्सा लेने से मना कर दिया, लेकिन बाद में उनकी प्रबल इच्छा को देखते हुये आयोजकों नें मंजूरी दे दी।
नंगे पांव लगाई थी दौड़
एक ओर जहां लोग इस दौड़ में ट्रैक पैंट और जूते पहन कर दौड़ लगा रहे थे। वही दूसरी ओर 65 साल की लता साड़ी पहने नंगे पैर मैराथन में दौड़ रहीं थी। उन्होंने रास्ते में पड़े कंकड़ – पत्थर से पैरों में लगने वाली चोट की भी परवाह नहीं की और तब तक दौड़ती रही, जब तक जीत हासिल नहीं कर ली। तीन किलोमीटर की इस रेस में लता ने वरिष्ठ नागरिक वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
लगातार तीन बार जीती मैराथन रेस
ऐसा पहली बार नहीं जब लता ने मैराथन में दौड़ लगाई, लगातार तीन बार 2014 से 2017 तक, उन्होंने इसी तरह जी तोड़ मेहनत की और वरिष्ठ नागरिक वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस उम्र में भी लता ने कभी हार न मानी। अपने इस साहस की वजह से वह लाखों लोगों की प्रेरणास्त्रोत बन गयी हैं, जिन पर एक प्रेरणादायक डॉक्यूमेंट्री मराठी फिल्म भी बन रही है।
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