सिर्फ 9 साल की उम्र में किसी का सामाजिक रूप से जागरुक होना आपने शायद ही सुना होगा, लेकिन जय अश्विन और प्रीत न सिर्फ इतनी कम उम्र से ही सामाजिक रूप से जागरुक थे, बल्कि 2012 से ही जब प्रीत सिर्फ 5 साल के था, उसने सामाजिक बदलाव के लिए काम करना भी शुरू कर दिया।
कैसे शुरू हुआ सफर ?
2012 में दोनों भाइयों ने एक ह्यूमेनिटेरियन क्लास जॉइन किया जिसका नाम था ‘लुक एन लर्न।’ जय ने ThinkRight.me के साथ बात करते हुए कहा , “वह दीवाली का महीना था और हम लोगों को पटाखे नहीं जलाने के लिए कहा गया। उन्होंने यह भी कहा कि जो पटाखे नहीं जलाएगा उसे गिफ्ट मिलेगा।” यब बात घर जाकर उन्होंने अपनी मां को बताई तो उन्होंने भी उन्हें ऐसा ही करने को कहा और गिफ्ट देने की बात भी कही।
जय और प्रीत की सफर आसान नहीं रहा। अपनी पहल के पहले साल वह घर-घर जाकर लोगों को पटाखे न जलाने की सलाह देते, कुछ लोग तो उनके मुंह पर ही दरवाजा दे मारते, तो कुछ भगा देते हैं। लेकिन बावजूद इसके दोनों भाइयों ने 5 लोगों को मना लिया और सबने मिलकर वृद्धाश्रम और अनाथालय में दीवाली मनाई।
फिर 2012 में उनकी पहल को स्कूल के प्रिंसिपल ने भी सपोर्ट किया और उनके काम का सम्मान किया। उन्हें हर क्लास में जाकर अपने अनुभव और काम के बारे में बताने को कहा गया।
![पहल में दिया किरण बेदी ने साथ](https://www.thinkrightme.com/wp-content/uploads/2020/02/Untitled-design-2020-02-12T191547.892-1-1.jpg)
आगे का सफर
धीरे-धीरे लोग उनका स्पोर्ट करने लगे और लोगों ने उन्हें अपनी संस्थाओं में आमंत्रित करना शुरू किया। इसमें सबसे खास पॉन्डेचेरी की गवर्नर डॉ. किरण बेदी की भूमिका रही। इस बारे में जय का कहना है, “2016 में डॉ. किरण बेदी मैडम ने हमें बॉर्न टू विन संस्था के तहत कई पहल चलाने की बात कही।” किरण बेदी ने इसी साल बॉर्न टू विन का लोगो लॉन्च किया और 6 महीने पहले ही यह एनजीओ रजिस्टर्ड हो गया।
इसके बाद दोनों भाईयों ने डॉ. किरण बेदी के साथ मिलकर सात किलोमीटर का वॉकाथॉन आयोजित किया, जिसमें 2000 स्कूली बच्चों ने पटाखे न जलाने का प्रण लिया। इसके बाद सेव एनिमल कैंपेन लॉन्च किया, जिसमें लोगों को बताया गया कि पटाखों की आवाज़ का जानवरों पर कितना गहरा असर होता है।
राइज़ फॉर राइस पहल
राइज़ फॉर राइस पहल की शुरुआत 2018 में हुई और इसका फोकस था वंचितों को खाना डोनेट करना। इस पहल के तहत इन लोगों ने एक महीने में 6 टन चावल जुटाएं और उसे अलग-अलग अनाथालय और वृद्धाश्रम में दान किया।
![सामाजिक बदलाव की ओर बढ़ाया कदम](https://www.thinkrightme.com/wp-content/uploads/2020/02/Untitled-design-2020-02-12T195201.093-1.jpg)
कपड़े का बैग साथ रखें
यह पहल भी दोनों भाईयों ने पर्यावरण बचाने के लिए दिसंबर 2018 में शुरू की थी। ये लोग अलग-अलग होटल में जाकर बेडशीट जुटाते हैं और उससे कपड़े का बैग बनाते हैं। इस काम में सेल्फ हेल्फ ग्रुप और एनजीओ इनकी मदद करते हैं। जय का कहना है कि “एक महीने में हमने स्थानीय दुकानदारों और आम लोगों को एक लाख कपड़े के बैग मुफ्त में बांटे हैं। हमें लगता है एक लाख कपड़े का बैग 20 लाख प्लास्टिक के बराबर होगा।”
जय और प्रीत की इस पहल को इंडियन कोस्ट गार्ड, अंडमान का भी सहयोग मिला है।
जय और प्रीत को मिले अवॉर्ड
- द अब्दुल कलाम इको फ्रेंडली अवॉर्ड 2019 (जय)
- परम ह्यूमेनिटेरियन अवॉर्ड 2018 (जय)
- भारत सरकार के स्वस्छ भारत अभियान का हिस्सा बनना (बॉर्न टू विन)
- द रोटरी यंग अचीवर अवॉर्ड 2018-19 (जय)
- द यंग इनोवेटर अवॉर्ड 2018 (जय)
- समाज में योगदान के लिए इंडियन कोस्ट गार्ड की ओर से 2017 में CREST पाने वाले सबसे युवा (जय)
- भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ टूरिस्म से प्रशंसा पत्र (कपड़े का बैग साथ रखने वाली पहल)
![प्लास्टिक नहीं कपड़े का बैग रखें साथ](https://www.thinkright.me/wp-content/uploads/2020/02/Untitled-design-2020-02-12T194102.028-1-1024x610.jpg)
सोशल वर्क और पढ़ाई का संतुलन
जय और प्रीत सोशल वर्क के साथ ही अपनी पढ़ाई को भी अच्छी तरह बैलेंस कर रहे हैं क्योंकि वह वीकेंड पर ही सोशल वर्क करते हैं। साथ ही उनके शिक्षक और स्कूल भी उनका पूरा सहयोग करते हैं। दोनों को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। जय और प्रीत अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता को देते हैं।
भविष्य की योजनाएं
जय कहते हैं, हमारी योजना अलग-अलग ऑर्गनाइजेशन और कॉरपोरेट्स से हाथ मिलाने की है। उनके कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिब्लिटी प्रोग्राम की मदद से हम बॉर्न टू विन ट्रक का आयोजन करना चाहते हैं, जो अलग-अलग जगहों से बेडशीट ला सके और हम उसे बैग में तब्दील कर सकें। हम स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बॉर्न टू विन क्लब को भी शामिल करना चाहते हैं ताकि छात्र सामाजिक ज़िम्मेदारियों की दिशा में एक कदम आगे बढ़ें।
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