जहां तक कला और संस्कृति की बात है भारत दुनिया के सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध देशों में से एक है। देश का ये सौभाग्य रहा है कि यहां बहुत कुशल कारीगर रहे हैं। उन्होंने भारतीय हस्तशिल्प को पूरी दुनिया में मशहूर किया है। कई ग्रामीण लोग आज भी हाथों से रचनात्मक वस्तुएं बनाकर अपनी आजीविका कमाते हैं। असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही एक हस्तकला है – बांस से चीज़ें बनाना।
इतिहास
भारत की हस्तकलाओं की परंपरा जितनी पुरानी है उतनी ही विविधताओं से भरी हुई है। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन पुराने ज़माने में आदिवासी अपने व्यक्तिगत सुविधा के लिए बांस का इस्तेमाल करते थे।
बेंत और बांस हस्तशिल्प
बेंत और बांस की हस्तशिल्प कला का असम,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में काफी बड़ा योगदान है। बेंत और बांस का उपयोग करके बनाई गई विभिन्न वस्तुओं जैसे कुर्सियां, टेबल, मैट, टोपी, बैग, हाथ के पंखे, कंटेनर आदि अत्यधिक टिकाऊ होते हैं और विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते हैं, जहां उनकी बहुत मांग है।

रीति रिवाजों में बांस है ज़रूरी
भारतीय संस्कृति में भी बांस का विशेष महत्व रहा है। पर्व-त्योहार, रीति-रिवाजों में बांस का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में होता है। हिंदू रिवाज के अनुसार बांस के बर्तनों में चुलिया, टिपारे, ढौरिया, बिजना, सूपा, सिंदौरा आदि का विवाह में होना ज़रूरी होता है। इनके बिना रस्में पूरी नहीं होती।
पर्यावरण का साथी है बांस
बांस पर्यावरण बचाने में मददगार है। बांस के पौधे मिट्टी की उपजाऊ ऊपरी परत का संरक्षण करते हैं। बांस की लगातार गिरती पत्तियां वन भूमि पर चादर-सी फैली रहती है। इससे नमी का संरक्षण बना रहता है। साथ ही तेज बारिश के समय ये पत्तियां ढाल बनकर भूमि की उपजाऊ ऊपरी परत का संरक्षण करती है। बांस के पौधों में हवा में उपलब्ध कार्बन-डाइऑक्साइड को सोखने की अच्छी क्षमता है।
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