कुंडलिनी ऊर्जा जीवन शक्ति ऊर्जा है, जो सभी के शरीर में मौजूद है। आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक औषधि विज्ञान के अनुसार शरीर में सात चक्र होते हैं। जिन्हें सप्त चक्र या ऊर्जा की कुंडली भी कहते हैं। कुंडलिनी को जब जागृत किया जाता है, तब यही सप्त चक्र जागृत होते हैं। इन सात चक्र का जागृत होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता है।
कुंडलिनी जागृत की जानकारी
हमारे शरीर में लगभग 72000 नाड़ियां है। जिनमें शरीर का संचालन करने में प्रमुख 12 नाड़ियां दिमाग में है। आध्यात्मिक रूप से इडा, पिंगला और सुषुम्ना का जिक्र है। इंडा-पिंगला के सक्रिय होने के बाद ही सुषुम्ना जागरूक होती है जिसके बाद सप्त चक्र जागृत होते हैं। मूलाधार चक्र जागरूक होने के बाद रोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं जिससे अन्य चक्र भी जागरुक होते हैं।
सप्त चक्र की जानकारी
1. मूलाधार चक्र
यह रीढ़ की सबसे निचली सतह पर गुदा और लिंग के बीच होता है। इस चार पंखुड़ियों वाले चक्र को आधार चक्र भी कहा जाता है। यह शरीर के दाएं और बाएं हिस्से में संतुलन बनाने, अंगों का शोधन करने का काम करता है। शरीर की गंदगी दूर करने वाले योगासन से यह जागृत होता है। जैसे सुबह की सैर, जॉगिंग करने, स्वस्तिकासन, पश्चिमोत्तानासन जैसे आसन और कपालभाति, प्राणायाम से मानसिक-शारीरिक शांति और स्थिरता बनती है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र
रीढ़ में पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) के ठीक पीछे होता है। इस चक्र के जागृत होने से क्रूरता, अविश्वास, गर्व, आलस्य जैसे दुर्गुणों का नाश होता है। जीवन में मौज-मस्ती और मनोरंजन ज़रुरी है पर इसे नियंत्रित रखने से आप इसे जागृत कर सकते हैं।
3. मणिपुर चक्र
यह ठीक नाभि के पीछे होता है। जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां एकत्रित होती है, वह ज़्यादा काम करते हैं और कर्मयोगी कहलाते हैं। यह पाचक व अंत स्त्रावि ग्रंथि से जुड़ा है। पाचन तंत्र को मज़बूती देने व शरीर में गर्मी व सर्दी के सामंजस्य को बनाता है। मणिपुर चक्र के जागृत होने से आत्मशक्ति बढ़ती है।
4. अनाहत चक्र
यह चक्र ह्रदय में होता है। ह्रदय और फेफड़ों को सफाई कर इनकी काम क्षमता को सुधारता है। इसके जागृत होने से कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता,डर जैसे भाव दूर होते हैं। प्रेम और खुशी जागरूक होती है।
5. विशुद्धि चक्र
यह गले में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है। यह पूरे शरीर को शुद्ध करता है। इस 16 पंखुड़ियों वाले चक्र को जागृत करने से 16 कला का ज्ञान होता है। भूख और प्यास को रोक जा सकता हैं। मौसम के प्रभाव को रोक जा सकता है।
6. आज्ञा चक्र
चेहरे पर दोनों भौहों के बीच में होता है। इस चक्र में अपार सिद्धियां और शक्तियां निवास करती है।
मानसिक स्थिरता और शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञान चक्षु को खोलता है।
7. सहस्त्रार चक्र
सिर के ऊपरी हिस्से में होता है। इसे शांति का प्रतीक भी कहते हैं। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सभी स्तर में सामंजस्य बनाता है। बाकी छह के जागृत होने पर यह चक्र खुद ही जागृत हो जाता है। लगातार ध्यान करने से यह चक्र जागृत होता है। सप्त चक्रों को जागृत करने के लिए आहार और व्यवहार में शुद्धता और पवित्रता की ज़रुरत होती है।
खुद की दिनचर्या में जल्दी उठना, जल्दी सोना, सात्विक आहार, प्राणायाम और ध्यान करना ज़रुरी होता है। अपने मन और मस्तिष्क को नियंत्रण में रखकर लगातार चक्रों को जागृत करने की कोशिश करें, तो कुंडलिनी जागरण होने लगती है।
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