एक महिला अपने आप में ममत्व के साथ धैर्य और साहस का भी प्रतीक होती है। हर परिस्थिति में ढलकर या हर परिस्थिति को अपने अनुसार ढालकर हमेशा अपने साहस का परिचय देती है। साल 2020 में भी बहुत सी महिलाओं ने अपने हौसलों से समाज को प्रेरित किया।
आंचल गंगवाल – मध्यप्रदेश
कड़ी मेहनत का फल देर से ही सही, लेकिन मिलता ज़रूर है। मध्य प्रदेश के एक चाय बेचने वाले की बेटी ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। 24 साल की आंचल गंगवाल फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में भारतीय वायु सेना में शामिल हो गई है। एक गरीब परिवार से आने वाली आंचल की सफलता का यह सफर आसान नहीं रहा। कई बार ऐसा भी हुआ जब उनके पिता के पास उनकी फीस भरने तक के पैसे नहीं थे। फिर भी आईओएफ पायलट बनने का सपना पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की और वह भारतीय वायुसेना अकादमी में टॉप करके राष्ट्रपति पट्टिका से सम्मानित हुई।
प्रतिष्ठा देवेश्वर – दिल्ली
शरीर की दुर्बलता किसी सफलता के आड़े नहीं आता, यही सोच है प्रतिष्ठा देवेश्वर की। 13 साल की उम्र में दुर्घटना के कारण प्रतिष्ठा देवेश्वर का शरीर लकवाग्रस्त हो गया था लेकिन हौसलों में कोई कमी नहीं आई। लगातार दो साल बिस्तर पर रहकर पढ़ाई की और फिर 12वीं में 90 प्रतिशत अंक लेकर आई। प्रतिष्ठा ऑक्सफोर्ड जाकर पढ़ने वाली भारत की पहली व्हीलचेयर महिला बनी। प्रतिष्ठा के जिद और जुनून ने उसे मंज़िल तक पहुंचाया।
मुदगली तिर्की – छतीसगढ़
नेक काम के लिये किसी समय या अवसर की ज़रूरत नहीं होती। कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के सूर गांव के लोगों को तमाम सेवाएं प्रदान करती हैं नर्स मुदगली तिर्की। 55 साल की मुदगली बहादुरी से जंगलों को पार करके दूरदराज के गांवों में जाकर लोगों के स्वास्थ्य का चेकअप करती है। इतना ही नहीं वह दवाइयों के साथ ज़रुरत का सामान भी लेकर जाती है, जिसे वह गांव वालों को मुफ्त में देती है। मुदगली केवल कोरोना काल में ही नहीं, बल्कि बीते 10 सालों से इस काम में जुटी हुई हैं।

परवीन कौर – हरियाणा
इंजीनियरिंग की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर प्रवीण कौर ने गांव के हालात सुधारने का फैसला लिया। हरियाणा के कैथल जिले के गांव ककराला कुचियां में सिर्फ 21 साल की उम्र में वह सरपंच बन गई। उनका सपना है अपने गांव को हाईटेक बनाने का और वह इसे जी जान से पूरा करने में लगी हुई है। उन्होंने सरपंच बनकर गांव की सड़कें ठीक करवाई, सोलर लाइट, सीसीटीवी कैमरा और पानी के लिए वाटर कूलर लगवाएं। गांव की बेटियों को पढ़ने लिखने के लिए प्रोत्साहित करती है। प्रवीण के प्रयासों को देखते हुए केंद्र सरकार उन्हें युवा सरपंच प्रधानमंत्री अवार्ड से भी सम्मानित कर चुकी है।
चैताली गुप्ता – मुम्बई
68 साल की चैताली गुप्ता मुम्बई के ज़रूरतमंद बच्चों की मां बन गई है। वह आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चे की शिक्षा का इंतज़ाम करती है। उनके बेहतर भविष्य के लिए लगातार काम कर रही है। इस काम में उनके पति भी हाथ बंटाते है। जब उनके पति आईआईटी में प्रोफेसर थे, तब कैपस के बाहर जब वह झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को देखती थी, तो वह उनकी बेहतरी के लिए सोचती। तभी उन्होंने बच्चों को शिक्षा देने का सोचा और आज वह करीब 600 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर जीवन संवार रही है।
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